Morning Mantras

Morning Mantras

To be recited in the early morning, after waking up and performing morning purifications, sitting in a crossed legs and closing eyes, or visualizing pictures (or statues) of God. The first mantra (Karagre Vasate) should be chanted while facing at palms, starting from top and going down to bottom. Among four parts, the first part should be chanted while facing at the top of the palm, the second part is chanted while facing at mid, and third part while facing at bottom. The end part is chanted by joining the palms as a salutations to the God and asking for His blessings. The other mantras are chanted either by joining the palms, or by sitting in meditation posture.

Morning Mantras

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

मङ्गलं भगवान विष्णुः मङ्गलं गरुणध्वजः।
मङ्गलं पुण्डरी काक्षः मङ्गलाय तनो हरिः॥

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ॥

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे ।
हे नाथ नारायण वासुदेव ॥

कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च ।
नन्दगोप कुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥

वन्दे देवं उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणम् ।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ॥
वन्दे सूर्य शशांक वह्निनयन वन्दे मुकुन्दप्रियम् ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥

भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥

ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥

सरस्वती मया दृष्टा वीणापुस्तकधारिणी ।
हंसवाहनसंयुक्तां विद्यादानं करोतु मे ।।

जिह्वाग्रे वसते तस्य ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।

ॐ ह्रीं संकटे मम रोग नाशाय नमः ॥
ॐ अं अंगारकाय नमः ॥
ॐ शं शनैश्चराय नमः ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्त्रये
अमृतकलश हस्ताय सर्वामय विनाशनाय
त्रैलोक्यनाथाय श्री महाविष्णवे नमः ॥

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै–
र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः ।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो ।
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ।।१।।

श्रीमच्चन्दनचर्चितोज्ज्वलवपुः शुक्लाम्बरा मल्लिका–
मालाऽलंकृतकुण्डला प्रविलसन्मुक्तावलीशोभिता ।
सर्वज्ञाननिदानपुस्तकधरा रुद्राक्षमालाधरा ।
वाग्देवी वदनाम्बुजे वसतु मे त्रैलोक्यमाता चिरम् ।।२।।

मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ।।३।।

नमो भगवते तस्मै व्यासायाऽमिततेजसे ।
यस्य प्रसादाद्वक्ष्यामि नारायणकथामिमाम् ।।४।।

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।५।।

उपनयतु मंगलं वः सकल जगन्मंगलालयः श्रीमान् ।
दिनकर किरण निबोधित नवनलिनदलनिभेक्षणः कृष्णः ।।१।।

काले वर्षतु पर्जन्यः पृथिवी शस्यशालिनी ।
देशोऽयं क्षोभरहितो ब्राह्मणाः सन्तु निर्भयाः ।।२।।

अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।
निर्धनाः साधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।३।।

तत्रैव गंगा यमुना च तत्र गोदावरी सिन्धु सरस्वती च ।
तीर्थानि सर्वाणि वसन्ति तत्र यत्राच्युतोदार कथा प्रसंगः ।।४।।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा ।।५।।

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पये तत् ।।६।।

॥ श्री हनुमान चालीसा ॥
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवनकुमार ।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ १ ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवनसुत नामा ॥ २ ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥ ३ ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ ४ ॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ ५ ॥
शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ ६ ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ ७ ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥ ८ ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ ९ ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥ १० ॥

लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ ११ ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ १२ ॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ १३ ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥ १४ ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबी कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥ १५ ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥ १६ ॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥ १७ ॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ १९ ॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ २० ॥

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ २१ ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥ २२ ॥

आपन तेज सम्हारो आपै । तीनौं लोक हाँक ते काँपै ॥ २३ ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥ २४ ॥

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ २५ ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ २६ ॥

सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥ २७ ॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥ २८ ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ २९ ॥
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥ ३० ॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥ ३१ ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ ३२ ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ ३३ ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ ३४ ॥

और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥ ३५ ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ ३६ ॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ ३७ ॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ ३८ ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ ३९ ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ ४० ॥

॥दोहा॥
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥

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